“हर कोई हमको मिला पहने हुए नकाब,।
अब किसको कहें अच्छा और किसको खराब”।।
कितना अच्छा होता ना अगर यह नकाब सभी को स्पष्ट दिखता लेकिन इंसान ने बड़ी चतुराई से इसे अपनाया। इसको पारदर्शी कर दिया। बचपन में मिलने वाले नकाब इतने उच्च तकनीक के हो जाएंगे किसको पता था, किसको पता था जीवन का एक पल भी बिना नकाब के बेईमानी बन जाएगा। आज हर कोई इसे खूबसूरत बनाने में लगा है, ताकि देर लगे पहचानने में #भेड़िए को, यह आधुनिक है, डराने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाता, बल्कि लोग तुरंत डर ना जाएं, तुरंत दूर ना हो जाए, इसलिए है यह। यह नकाब भरोसा दिलाता है, पर उतरने के साथ ही खुद को ठगा महसूस भी कराता है। आज हर कोई के पास है यह, किसी ने अच्छे से अपनाया तो किसी ने जरूरत के हिसाब से, किसी का वजूद है यह नकाब तो किसी के लिए जरूरत, जरूरत इसलिए है ताकि आप भीड़ से अलग ना दिखो। ईमानदारी का चोला जैसे ही पहना लोगों ने कमजोर समझा ठगने की चेष्टा की। व्यक्ति अपने आप को ओछा न समझे, कमजोर ना दिखे भीड़ में, इसलिए जरूरत भी है नकाब।
शायद #हिटलर ने सच ही कहा “कि झूठ जितना बड़ा होगा उसपर विश्वास करने की संभावनाएं भी उतनी ही बड़ी होगी”। झूठ को बड़ा बनाना है तो अपना सच दुनिया को क्यों दिखाना है।हमलोगो ने ये जरूर सुना होगा कि “गिरगिट माहौल के अनुसार अपना रंग बदल लेती है” ,पर ये आज का इंसान २१ शताब्दियों में DNA के उच्चतम विकाश और फेर बदल के बाद का है। ये माहौल के अनुसार नहीं बदलता, बल्कि खुद माहौल बन जाता है।
रंगो की इतनी लीपा पोती है कि फीके रंग दिखते नहीं और गहरे रंगो ने तो भड़कीले पन का बस नकाब पहना हुआ है।और इसी रंगो के हेर फेर में सब उलझे पड़े है।सबो ने अपने आप को पहले ही रंग लिया ताकि किसी दूसरे का रंग उनपर ना चढ़े।
ये रंग आपको दंग ना करदे इससे पहले जरूरत है की आप अपना रंग उतार ले।नकाब चाहे किसी प्रकार का हो, वो आपके चेहरे को नहीं दिमाग को ढक रहा है।झूठ कितना भी बड़ा हो सच कि एक चिनगारी उसको जला देती है। अपने दिमाग और दिल रूपी आँख को खोले और तब आपको ये दुनिया मीठी दिखेगी।जिसके मिठास की कोई सीमा नहीं है।
A-m@n
Nakabi dunia ka sach mukhauta
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Sahi kaha aapne…hota sb ke pass hai..ye..
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Nice one.
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Thanks sir.
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