Show-off( दिखावा)

हेल्लओ मेरे दोस्तों, कैसे हैं आप। मैं आज आपके साथ जो अनुच्छेद शेयर कर रहा हूँ , उसके टाइटल से ही आप बहुत हद तक समझ गए होंगे की ये article किस विषय पर है। ये उनके लिए है जो अपने आप को प्रमोट करने के लिए दिखावा करते है।दिखाना और दिखावे में काफी फ़र्क़ है, और यही फर्क के साथ मेरी आर्टिकल आपका स्वागत करती है।अगर पसंद आये तो लाइक जरूर करे।

Show-off

👉आपने सड़को पे लेबल लगे हुए इतराते उन सेबों को जरूर देखा होगा जो कई बल्बों के प्रकाश से नहा रहे होते हैं, और अपनी शुद्धता का प्रमाण दे रहे होते हैं।
ये दिखावे के समय है, आपने ये जरूर सुना होगा कि ‘हर चमकती चीज सोना नही होती’ पर हर चमकती चीज बिक जरूर जल्द जाती है। व्यक्ति अपबी झूठी शान और रुतबे को बरकरार रखने के लिए आज ये दिखावा करता है। उसे मोम की परत लगे चमचमाते सेब पसंद आते हैं, उसे उस गरीब की टोकरी नही दिखती जो मोम की लव के नीचे दबी होती है। क्योंकि अब चश्मे का रंग बदल गया है लोग और उनकी आंखों से ये दुनिया अब रंगीन दिखती है और शायद लोग देखना भी चाहते हैं।

दिखावा कहे या इतराना दोनो शब्द लगभग एक से मतलब को रखे हुए हैं। हमारे शरीर का खूबसूरत अंग आँख जो जो सब देखता है,पर उनको समझता दिमाग है ,कि हम जो देख रहे हैं वह वास्तव में वही दिख रहा है या दिखावा हो रहा है। आपने लोगों को यह जरूर कहते सुना होगा कि जो “दिखता है वह बिकता है “और जो दिखावे के साथ दिखता है वह थोड़ा और जल्द बिकता है। दरअसल हर कोई किसी न किसी तरह से दिखावा करता ही है ,कभी-कभी यह दिखावा इतना सूक्ष्म होता है कि करने वाला भी जाने अनजाने ही इस में लिप्त लिप्त हो जाता है। पर क्या यह दिखावा सही है और अगर सही भी है तो किसके लिए करने वाले के लिए या जो इसको देख रहा है और शामिल है उसके लिए।

जो सामर्थ्य है आर्थिक रूप से उनको तो कहीं दिक्कत नहीं आती पर जो नहीं है और जिसको अपने सामर्थ्य का दिखावा करना है उनको थोड़ी बहुत जरूर आती है। उदाहरण के तौर पर अगर किसी के पास महंगी फोन है या बाइक है और वह पूरी तरह से सामर्थ है इसके लिए, और कोई दूसरा जो सामर्थ्य नही है और उसे दिखावा करना है तो उसके लिए यह महंगा दिखावा है आप घर पर रोज़ाना क्या और किन-किन तरह की चीजें खाते हैं इससे इससे कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ता, पर इससे ज्यादा फर्क पड़ता है कि आप खाते हुए कितनी बड़ी स्क्रीन के TV पर देख रहे हैं, आपके पेट में क्या पड़ा है लोग आपकी TV स्क्रीन के साइज को देखकर अंदाजा लगा लेंगें,और यही सब कारण है कि अगर आज हम किसी से यह राय लें लें यह राय लें लें कि भाई यह बताओ कि यह कपड़ा कैसा है या जूता या फिर मेरा संस्था या फिर मेरे बाल कैसे कटे हैं ,तो जवाब होगा कि कहां से लिए हो ,कितने में लिए हो ,कहां तुम ने बाल कटवाए हैं,कपड़ा है तो ब्रांड क्या है और अगर संस्था है तो fee क्या है? इस तरह के न जाने कितने सवाल लोग दाग देते है।और सब सवाल का जवाब श्रोता के लायक रहा तब तो सब सही है नही तो फिर जवाब आपको इस तरह का भी मिल सककता है “लोकल है”। इस लोकल शब्द का टैग ना लगे इसलिए जरूरी है कि व्यक्ति अपने सामर्थ्य का दिखावा करे।

लोगों को यह समझना होगा कि जो दौलत हमने आजादी के रुप में पाई है वो किसी सादे इंसान के झोली से आई है ।और अगर आप सादगी पसंद नही करते तो कोई बड़ी बात नही पर कमसे कम आने भड़कउपन का दिखावा तो न करे।।

Thank you..

Amankibhasha

वो बचपन था।

वो बचपन था।

जब ठेंस लगती थी पैरों में,
वो समय कौन सा था,
जब गलियों में पांव उठाकर चलना सीखते थे,
वो समय कौन सा था,
जब बात बात पर रोते, बिना बात के हँसते,
वो समय कौन सा था,

वो बचपन था।

वो बचपन था।।

तब सब कुछ बड़ा लगता था,
तब Shaktimaan भी आया करता था,
तब सब अपने थे,
तब हर बात प्यारी थी, हर बात में प्यार था,
तब बड़ी पेंसिल बहुत बड़ी और छोटी बहुत छोटी दिखती थी,
जब पेंसिल की नोक तलवार से भी तेज कर देते थे,
वह समय कौन सा था,
जब कश्तियां बारिश के पानी में भी चला देते,
वो समय कौन सा था,
जब सुबह के बाद शाम हुआ करती,
और अपनी साइकिल पास हुआ करती,
वो समय कौन सा था ×2
……
….
..

वो बचपन था।

वो बचपन था ।।

लिखावट (writing)

#writing #mahatma_gandhi #पन्नो #childhood

जैसा की महात्मा गांधी जी ने भी ये कहा है कि ” सुंदर लिखावट शिक्षा का अनिवार्य अंग है” , और जब मैंने अपने बचपन के पन्नो को पलटा तो मैंने अपने शब्दों को कुछ इस तरह पाया जो की मेरी लिखावट में आपको दिखेगी।

लिखावट

मुझे याद है वो लिखावट,
जो लिखी थी मैंने बचपन के पन्नो पर,

मुझे याद है वो लिखावट।

जब अक्षर डरते थे,शब्द बनने को पन्नो पर,

जब पेंसिल डरती थी,चलने को कोरे पन्नो पर,

जब पापा कहते, लिखावट के बिना कुछ नही है जीवन के पन्नो पर,
मुझे याद है वो लिखावट,
जो लिखी थी मैंने कॉपियों के पिछले पन्नो पर,
जो किया था पहला दस्तखत मैंने,
जो बनाया था पहला दिल मैंने,
जो बनायी थी पहली तस्वीर मैंने,
मुझे याद है वो लिखावट,

मुझे याद है वो लिखावट।

नशा (Addiction)

#say_no_2_drugs
#drugs #addiction

ये विवाद है खुद से और पनपने वाले शारीर के अंतर्मन से जो ये मज़बूर करता है एक नशे में रहने वाले व्याक्ति को की तुम मेरे आगोश में आओ ही।जब नशा बोलता है तो आदमी चुप होता है,और नशा क्या बोलता है?और एक आदमी का अंतर्मन क्या बोलता है जो इसको छोड़ना चाहता है ,उसी के विषय में ये मेरा संवाद है, और इसके पीछे मेरा अलग ही नजरिया है जो की मेरी खुद की सोच है।अगर आपको अच्छा लगे।।तो आप अपना अँगूठा मेरी भलाई के लिए इस्तेमाल कर सकते है।धन्यवाद।🙂

▪️तु मुझे छोड़ता क्यों नहीं,
तेरी पकड़ बहुत मजबूत है ,
तू फिसलता क्यों नहीं।
▪️मैंने पकड़ा ही कब था तुझे,
तू तो वो खुद है जो मुझे छोड़ता नही ,
फिसलूंगा मैं नहीं, गिरेगा तू खुद,
क्योंकि तू ही तो है जो मुझे छोड़ता नहीं।
▪️नहीं तू झूठा है तुझ में जज्बात नहीं,
तू छुपाता सच को है, पर तू झूठ भी नहीं सच भी नहीं।
खोया खोया मन है मेरा, कुछ सूझता क्यों नहीं,
तेरे लिए खुद से की है गद्दारी, तू यह सोचता क्यों नहीं।
▪️मैं सच हूं ,क्योंकि मैं तेरा सच दिखाता हूं,
तू भी उतना ही जिम्मेदार है अपनी हालत का,
जितना मैं हूं।
क्योंकि तू सब जानता है मेरे बारे में ,
पर तू ही तो है जो मुझे छोड़ता नहीं।
मैं तुममें ही था, तूने ही मुझे जगाया था,
मैं तुममें ही था, तूने ही अलग दिखाया था।
▪️तूने मेरा मन मचल आया,
तूने ही मुझको अंदर से खाया,
मुझ को अलग किया सबसे, तूने ही मुझको गिराया,
गलती हुई मुझसे जो मैंने अलख दिखाया,
गलती हुई मुझसे जो मैंने तुझे जगाया।
छोडो मेरा साथ ,तुम अब सोते कयूँ नही,
करना है अब कुछ बड़ा काम पर,
तुम हो की छोड़ते ही नही।।

To be continued…………

नकाब (mask) –The hidden face

“हर कोई हमको मिला पहने हुए नकाब,।
अब किसको कहें अच्छा और किसको खराब”।।

कितना अच्छा होता ना अगर यह नकाब सभी को स्पष्ट दिखता लेकिन इंसान ने बड़ी चतुराई से इसे अपनाया। इसको पारदर्शी कर दिया। बचपन में मिलने वाले नकाब इतने उच्च तकनीक के हो जाएंगे किसको पता था, किसको पता था जीवन का एक पल भी बिना नकाब के बेईमानी बन जाएगा। आज हर कोई इसे खूबसूरत बनाने में लगा है, ताकि देर लगे पहचानने में #भेड़िए को, यह आधुनिक है, डराने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाता, बल्कि लोग तुरंत डर ना जाएं, तुरंत दूर ना हो जाए, इसलिए है यह। यह नकाब भरोसा दिलाता है, पर उतरने के साथ ही खुद को ठगा महसूस भी कराता है। आज हर कोई के पास है यह, किसी ने अच्छे से अपनाया तो किसी ने जरूरत के हिसाब से, किसी का वजूद है यह नकाब तो किसी के लिए जरूरत, जरूरत इसलिए है ताकि आप भीड़ से अलग ना दिखो। ईमानदारी का चोला जैसे ही पहना लोगों ने कमजोर समझा ठगने की चेष्टा की। व्यक्ति अपने आप को ओछा न समझे, कमजोर ना दिखे भीड़ में, इसलिए जरूरत भी है नकाब।

शायद #हिटलर ने सच ही कहा “कि झूठ जितना बड़ा होगा उसपर विश्वास करने की संभावनाएं भी उतनी ही बड़ी होगी”। झूठ को बड़ा बनाना है तो अपना सच दुनिया को क्यों दिखाना है।हमलोगो ने ये जरूर सुना होगा कि “गिरगिट माहौल के अनुसार अपना रंग बदल लेती है” ,पर ये आज का इंसान २१ शताब्दियों में DNA के उच्चतम विकाश और फेर बदल के बाद का है। ये माहौल के अनुसार नहीं बदलता, बल्कि खुद माहौल बन जाता है।

रंगो की इतनी लीपा पोती है कि फीके रंग दिखते नहीं और गहरे रंगो ने तो भड़कीले पन का बस नकाब पहना हुआ है।और इसी रंगो के हेर फेर में सब उलझे पड़े है।सबो ने अपने आप को पहले ही रंग लिया ताकि किसी दूसरे का रंग उनपर ना चढ़े।

ये रंग आपको दंग ना करदे इससे पहले जरूरत है की आप अपना रंग उतार ले।नकाब चाहे किसी प्रकार का हो, वो आपके चेहरे को नहीं दिमाग को ढक रहा है।झूठ कितना भी बड़ा हो सच कि एक चिनगारी उसको जला देती है। अपने दिमाग और दिल रूपी आँख को खोले और तब आपको ये दुनिया मीठी दिखेगी।जिसके मिठास की कोई सीमा नहीं है।

A-m@n

My father

” पिता तू गलत क्यूँ नही होता है”

ऐ बचपन! तुझे क्यूँ नहीं समझ में आता है,
जो तेरा अपना है,वह क्यों पराया लगता है।
जो जागता है तेरे लिए, तु उसे ही बेगाना समझता है, उसकी हर बात तुझे,क्यूँ बेबात लगती है,
कही वह सब बातें, क्यों मतलबी सी लगती है।
जागता है दिल मेरा हर वक्त, पर दिमाग सोता है,
ऐ पिता तू गलत क्यूं नहीं होता है।
तेरा कौन है, तुझे क्यों न समझ आता है,
तू सिर्फ चेहरा देखता, भाव क्यों न दिखता है।
चला था लोगों को पढ़ने, पिता तुझे ही न पढ़ पाता,
जो तू बोलता, सिर्फ सुनाई देता समझ क्यूँ न आता। आंख आंसू भी ना निकाल पाते, दिल अंदर-अंदर ही रोता है,
ऐ पिता तू गलत क्यों नहीं होता है।